स्पष्ट एक्सप्रेस।

कालू को तक़रीबन पिछले तीन-चार साल से जानता था, उसका अनुशासन ऐसा था जैसे सेना की वेटरनरी कोर में ट्रेनिग पा कर आया हो, उसे फालतू किसी से बात करना पसंद नही था, उसे दिन में सोना और रात को ड्यूटी देना ही पसंद था। वह अक्सर सुबह सवेरे दुकान के पास आकर चक्कर मरता और दूध की तलाश में बैठ जाता था। मैं जब भी कालू को देखता था तो मुझे ऐसा लगता जैसे मानों मुंशी प्रेमचंद की कहानी " पूस की रात" के किरदार हल्कू का जबरा, कहानी से बहार निकल कर सामने साक्षात खड़ा हो। कुछ ही समय पश्चात ही कालू आस-पास के सभी दुकानदारों का चहेता बन गया। हर कोई उसे अपने ड्योढ़ी पर रखना चाहता था परंतु कालु तो स्वच्छंद और घुमंतू प्रवृत्ति का था उसे तो खानाबदोश जीवन में ही आनंद आता था, उसे जब भी किसी ने अपना बनाने की कोशिश करी उसको इस बात का आभास हो जाता कि यह शख्श मुझको अपने यहां रख कर अपने घर की शोभा बढ़ाना चाहता है और वह तुरंत चुपके से खा पी कर अपनी पूंछ नब्बे डिग्री में उठाकर दाये-बांये, उपर-नीचे हिलाते हुए खिसक लेता।
फिर बीते कुछ समय पश्चात कालू की मासूमियत के कायल होकर पंजाब रोडवेज के दो कर्मचारी भी प्रत्येक दिन सुबह-सुबह अपने गंतव्य की और जाते हुए कालू को मदर डेरी का दूध पिलाना नहीं भूलते थे, इसके बाद दिन भर कालू को कोई न कोई दुकानदार आसपास के निवासी कालू को कुछ न कुछ खिलाते ही रहते थे, कोई उसे पेडिग्री खिलाता अन्य कोई " बंद, बिस्कुट" परंतु कालु तो हमारे लोकल पुष्पा की तरह किसी का एहसान मानने का आदी ही नहीं था, बस इधर खाया उधर खाया और जरा सा भी शक होने पर चुपके से अपनी पूछ को ऊपर नब्बे डिग्री में हिलाते हुए चल पड़ता अपनी मंजिल की ओर। कालू के कारण आस पास के लेंडी- केंडी-एंडी की भी बहार आ जाती, क्योकि कालू का पेट भर जाने के बचा हुआ सब उनका हो जाता। गर्मियों में कभी वह सड़क के किनारे पड़ी रेत पर लोट लगता तो कभी कीचड़ में गुलटियाँ लगता, रेत में लोट लगाने के बाद जब भी कालू वापस आता उसकी त्वचा और बाल इतने चमकदार हो जाते जैसे अभी-अभी किसी मल्टी नेशनल कम्पनी का सन स्क्रीन लोशन व शैम्पू लगाकर आया हो। मुझे याद नही आता की मैंने कालू को किसी से झगड़ा करते हुए देखा हो और परंतु बस कालू में तो एक ही कमी थी वह बस अपनी सेहली को ढूंढने के लिए गली के कुछ आवाराओं के साथ निकल पड़ता था और उसके बाद श्याम को लुटी-पिटी अवस्था में वापस आता था। एक दिन कालू बिना दूध पिए गली के कुछ आवाराओं के साथ अपनी सहेली को ढूंढने के चक्कर में सुबह से ही गायब हो गया क्योकि दिल है की मानता नही और जब अगले दिन वापस आया तो उसका एक कान गायब हो गया था जैसे की पुरानी पिक्चर के विलियन कलाकार ने हिरोइन को पाने की चाहत में कालू का कान चबा दिया हो ।
एक दिन फिर कालू सुबह से ही गायब हो गया और जब आया तो उसकी पीठ में बहुत बड़ा घाव था, ऐसा लग रहा था जैसे इस बार कालू साऊथ की फिल्म के विलयन के हत्थे चड़ गया हो, परन्तु इस बार कालू का घाव बढ़ता ही चला गया और कालू की सहेत धीरे-धीरे गिरती जा रही थी, अब सभी लोग कालू से कटने लगे थे, कालू इन सब बातो को समझ गया था और सच को स्वीकारते हुए कालू ने लोगो के पास जाना छोड़ दिया, एक दिन फिर कालू अचानक से गायब हो गया और काफी दिन तक वापस नही आया, कई दुकानदारों ने आस-पास पड़ोस वालों ने बोला कालू तो चला गया कोई बोलता कालू मर गया पर मुझे विस्वास था हर बार की तहर कालू वापस आएगा और मुझे आस पास के हर काले कुत्ते में कालू नजर आता और एक दिन देर रात जब मैं शाम को घर की ओर जा रहा था तो मैंने कालू की झलक दिखाई दी, इसके बाद आस-पास के दुकानदारो से पूछने पर कालू के वापस आने की ख़ुशी उनके चेहरे पर साफ नजर आ रही थी।
अगले दिन देखने पर पता चला , कालू के गले पर एन.जी.ओ वालों का पट्टा बंधा था, जिस पर उनका नंबर भी लिखा था। एन.जी.ओ ने एक बार फिर कालू को बचा लिया था कालू एक बार फिर वापस आ गया था " कालू इस फाइट बैक"।
( दीपक कंडारी)
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Well said
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